लेखक डा0 नफ़ीस अख़्तर
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और स्रष्टा का अस्तित्व
आज विज्ञान के क्षेत्र मे यह सर्वमान्य तथ्य है कि यह जगत जिसका हम एक हिस्सा हैं सदैव से मौजूद नहीं है ,बल्कि बाद मे अस्तित्व मे आया है .इसका एक आरंभ है। हर वह वस्तु जिसकी उत्पत्ति हुई है और जिसका एक आरंभ है अवश्य ही उसका कोई उत्पत्तिकर्ता और आरंभकारक होगा। उत्पन्न सृष्टि को उत्पत्तिकर्ता चाहिये । ईश्वर के अस्तित्व का यही सबसे बड़ा प्रमाण है।
महा विस्फोट सिद्धांत
वैज्ञानिक इस बात परलगभग सहमत हैं कि ब्रह्मांड की उतपत्ति एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुई है । इसीको महाविस्फोट सिद्धान्त कहते हैं । जिसके अनुसार आजसे लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप मे था। ब्रह्मांड का संपूर्ण पदार्थ सघन रूप से उस एक परमाण्विक इकाई( जिसे विज्ञान जगत मे ज़ीरो वाल्यूम की ब्रह्माण्डीय गेंद कहा जाता है) मे मौजूद था। उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई वस्तु भी अस्तित्व मे नहीं थी। महाविस्फोट से अत्यधिक उर्जा का उत्सर्जन हुआ ।सघन पदार्थ विस्तृत और उसके अंश एक दोसरे से दूर होने लगे। ततपश्चातसमय अंतरिक्ष समेत संसार की सभी वस्तुएं अस्तित्व मे आई हैं। विज्ञान ही के अनुसार (न्यूटन का गति का प्रथम नियम) बिना बाह्य बल के प्रयोग के उस ब्रह्माण्डीय गेंद अर्थात परमाण्विक इकाई मे गति पैदा होना या विस्फोट किर्या का होना संभव ही नहीं था। अब स्वाभाविक ही यह प्रश्न उठता है कि आखिर उस बाह्य बल का सरोत क्या था ? ईश्वर के अस्तित्व को माने बिना इस घटना की व्य़ाख्या संभव नहीं है ।
खगोल भौतिकविद रोबर्ट जेस्ट्रो कहता है इस घटना सेब्रह्माण्ड यकायक अस्तितव मे आया लेकिन हम नहीं जानते कि महाविस्फोट घटित होने का कारण कौनथा।
कुरान मे मानव से इसी स्वभाविक प्रश्न पर विचार मंथन के लिए कहा गय़ा है।
क्या यह किसी स्रष्टा के बिना खुद पैदा हो गये हैं, या ये खुद अपने स्रष्टा हैं या इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को इन्हों ने ही पैदा किया है। (अध्याय 52 आयत 35)
क्या इन्कार करने वालों ने देखा नहीं कि आसमान व ज़मीन( सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड )प्रस्पर मिले हुए थे अर्थात एक बिन्दु पर एकत्रित थे फिर हमने अर्थात ईश्वर ने आसमान व ज़मीन आदि को अलग अलग किया ( अध्याय 21 आयत 30)
पृथ्वी की संरचना
हमारे इस पृथ्वी की जटिलता स्वयं एक ज्ञानपूर्ण डिज़ाइनर की ओर इंगित करती है, जिसने न केवल इस संसार को अस्तित्व प्रदान किया अपितु वही इसको संभाले हुए भी है। पृथ्वी का उचित आकार औऱ तदनुसार गुरुत्वाकर्षण ज़मीन के ऊपर अधिक्तम पचास मील चौड़े एक वायुमण्डल के बने रहने का कारण है, जिसमे सर्वाधिक मात्रा नाइट्रोजन और आकसीजन की है। यदि पृथ्वी अपने आकार से छोटी होती तो बुध ग्रह की तरह यहां भी वायुमण्डल का वजूद न होता, और वायु के अभाव मे पृथ्वी पर जीवन भी संभव न था। और यदि पृथ्वी अपने आकार से बड़ी होती तो बृहस्पतिग्रह की तरह यहां के वायुमण्डल मे भी हाइड्रोजन स्वतंत्र अवस्था मे पाया जाता, फलस्वरुप पानी के अभाव मे ज़मीन का वातावरण जीवन के प्रतिकुल होता। पृथ्वी ही मात्र एक ऐसा ग्रह है जो पेड़, पौधों और जीव, जंतुओं के जीवन हेतु सहायक एक ऐसे वायुमण्डल से सुसज्जित है जिसमे गैसों कासही एवं जीवन अनुकुलमिश्रण मौजूद है।
पृथ्वी के आकार की तरह सुर्य से उसकी दूरी भी सर्वथा उचित और जीवन के लिए बिल्कुल मुनासिब है। यदि यह दुरी कुछ अधिक हो जाए तो हम सब बर्फ बन जाएं और यदि पृथ्वी सुर्य से कुछ और निकट हो जाए तो हम सब जलकर भष्म हो जाएं। सुर्य और पृथ्वी के बीच उचित दूरी के कारणही पृथ्वी पर संतुलित तापमान बरकरार रहता है। पृथ्वी इस उचित दूरी को बनाए रखते हुए लगभग 67000 मील प्रति घंटे की रफतार से सुर्य का चक्कर लगा रही है। तथा यह स्वयं अपने अक्ष पर भी निरंतर घूम रही है, जिससे रात दिन होते हैं। इस प्रकार प्रतिदिन ज़मीन को सुर्य से उचित मात्रा मे उर्जा मिलती रहती है।चांद जो हमारी पृथ्वी का एक मात्र उपग्रह है । इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति समुद्र मे गति एवं ज्वार भाटा पैदा करती है । वरन समुद्रीय जल स्थिर और निश्चल रहता और ज़मीन पर वर्षा जैसी महत्वपूर्ण किर्या बाधित होती। इसी तरह चांद की संतुलित गुरुत्वाकर्षण शक्ति समुद्रीय जल को नियंत्रित भीरखती है। वरन बड़े बड़े समुद्र हमारे महाद्वीपों की ओर बढ़ आते और उन्हे डुबो देते। चांद का उचित आकार और पृथ्वी से उसकी उचित दूरी उसकी संतुलित गुरुत्वाकर्षँण शक्ति का कारण है। पृथ्वी का आकार, सुर्य से उसकी दूरी और उसकी चाल एवं गति तथा चांद का आकार एवं पृथ्वी से उसकी दूरी सबका जीवन के अनुकुल होना क्या मात्र संयोगवश है ? क्या कई सारे सम्भाविक विकल्पों मे से हमेशा सही विकल्प का चुनाव बिना बुद्धि विवेक के हो सक्ता है ? क्या इसके पीछे अवश्य एक चेतन सत्ता का होना ही बुद्धिसंगत नहीं है.?
पवित्र कुरान ने अनेकों स्थान पर पृथ्वी के जीवन अनुकुल होने को ईश्वर के प्रमाणस्वरूप प्रस्तुत किया है।
और वह कौन है जिसने ज़मीन को रहने और बसने का स्थान बनाया ( अध्याय 27 आयत 61)
और जमीन मे बहुत सी निशानियाँ ( प्रमाण ) हैं विशवाश करने वालों के लिए (अध्याय 51 आयत 20)
पृथ्वी पर जल की व्यवस्था
जल जीवन के लिए अति आवश्यक है। वनस्पति, जंतु एवं मानव समेत सभी जीवों की संरचना पानी से हुई है। हमारे शरीर का दो तिहाई घटक पानी ही है। पानी के गुण जीवन के सर्वथा अनुकुल हैं। पानी के क्वथनांक और हिमांक मे व्यापक अंतर के कारण ही हम लगातार बदलते तापमान मे 70 प्रतिशत पानी पर आधारित अपने शरीर के तापमान को सामान्य रखने मे सफल रहते हैं। पानी सार्वभौमिक विलायक और रसायनिक तटस्थ होने के कारण खाद्य पदार्थो, औसधियों और खनिज पदार्थों को रक्त वाहिकाओं द्वारा पूरे शरीर मे पहुंचाने का कार्य कर रहा है। जल को 4 डिग्री सेंटीग्रेड पर गरम करो या ठन्डा जल फैलता है। जल के इस एक गुण के कारण पृथ्वी का सम्पूर्ण पर्यावरण बदल गया है। इसी के कारण पृथ्वी जीवन के योग्य बन पाई है। यदि अन्य द्रवों की तरह जल भी 4 डिग्री सेंटीग्रेड पर संकुचित होता तो पृथ्वी के समुद्र वर्ष भर जमे रहते। पृथ्वी का वातावरण अत्यधिक ठन्डा होता तो पृथ्वी जीवन के योग्य कभी न बन पाती। पानी मे ऐसी असाधारण क्षमता का विकास करने का श्रेय ईश्वर जैसी शक्ति को ही दिया जा सकता है।
पानी हमारे लिए अतयंत आवश्यक है। लेकिन 97% पानी समुंद्रों मे है और हमारी पहुँच से दूर है। इसलिए हमारी ज़मीन पर एक ऐसी व्यवस्था कार्यरत है जो समुंद्रीय जल से नमक निकाल कर शुद्ध जल पूरे ज़मीन पर वित्रित करती है। समुन्द्रीय पानी नमक को छोड़ वाष्पित होकर बादल बनता है। हवाएं इन बादलों को लेकर थल के अनेक भागों मे पहुंचा कर वर्षा कराती हैं। यह जल आपूर्ति तथा जलशोधन की विकाररहित प्राकृतिक व्यवस्था है। किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक व्यवस्था की स्थापना अपने आप तो नहीं होसकती। बल्कि इस के पीछे एक ऐसे दिमाग़ का होना अनिवार्य है जिसे आवश्यक्ता एवं उद्देश्य का बोध हो और उसके समाधानके तरीके का ज्ञान हो। फिर यह भी ज़रूरी है कि प्राकृति एवं प्राकृतिक शक्तियाँ उसके आधीन हों, ताकि वह उन्हें इस पूर्वनियोजित व्यवस्था मे कार्यरत कर सके। निःसन्देह यह जीवनाधार व्यवस्था एक सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्रमाण प्रस्तुत कर रही है। कुरान मे कहा गया है
कभी तुमने आँखों खोल कर देखा, यह पानी जो तुम पीते हो, इसे तुमने बादल से बरसाया है, या इसके बरसाने वाले हम हैं ? हम चाहें तो इसे अतयंत खारा बना कर रख दें, फिर क्यों तुम कृतज्ञता नहीं दिखाते ( अध्याय 56 आयत 68,69,70)
मानव शरीरकी संरचना
मनुष्य के चारों ओर और स्वयं उसके व्यक्तित्व मे ईश्वर के अस्तित्व के चिन्ह फैले हुए हैं। कुरान मे कहा गया है।
“और खुद तुम्हारे अस्तित्व मे भी ईश्वर की निशानियाँ हैं (अध्याय 51 आयत 21)
गुर्दे
गुर्दे युग्मित अंग होते हैं, जो कई कार्य करते हैं। ये हमारी मूत्र-प्रणाली का एक आवश्यक भाग हैं और ये इलेक्ट्रोलाइट नियंत्रण, अम्ल-क्षार संतुलन, व रक्तचाप नियंत्रण आदि जैसे समस्थिति (homeostatic) कार्य भी करते है। ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटाते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है। मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करतेहैं; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं। गुर्दे हार्मोन भी उत्पन्न करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल, रेनिन और एरिथ्रोपिटिन शामिल हैं।
एक नेफ्रोलोजिस्ट कहता है कि गुर्दे का अध्ययन करते समय मुझे एक आध्यात्मिक अनुभव हुआ, ओर मुझे इस बात पर .यकीन हो गया कि केवल सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान ईश्वरीय बौद्धिक सत्ता ही गुर्दे जैसी वस्तु को डिज़ाइन कर सकती है। संयोगवश गुर्दे का अस्तित्व मानने का कोई आधार नहीं है। विलयन मे एलेक्ट्रोलाइट्स, हार्मोन्स , विष,गैस एवं द्रव पदार्थों का हेयर ट्रिगर संतुलन तथा शूगर, और अणुओं का गुर्दे की बारीक झिल्लियों से आवागमन किसी मानवीय समझ से परे है।
नेत्र
हमारी आंखों के संबन्ध मे क्या यह मानने योग्य है कि बिना किसी योजना और बिना किसी उद्देश्य के अपने आप हमारे शरीर मे एक आकार बन गया जिसने संयोगवश देखने का काम शुरू कर दिया ? शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान तो यह तथ्य स्थापित करता है कि नेत्र का एक एक अंश देखने की क्रिया केउद्देश्य की पूर्ति के लिए ही डिजाइन किया गया है। पहले एक आवश्यक्ता की पूर्ति का उद्देश्य सामने आया । फिर उस उद्देश्य को पूरा करने हेतु एक डिजाइन तय्यार हुआ। और फिर उस डिजाइन के अनुसार हमारी आंखों की रचना हुई। जो सत्तर लाख रंगों में फर्क कर सकती है। और स्वतः सकेन्द्रित होती है।एक साथ पन्द्रह लाख संदेशों को हैन्डेल करती है। क्या यह तथ्य नेत्र रचना के पीछे किसी बुद्धि एवं चेतना के अस्तित्व का प्रमाण नहीं है ?
मस्तिष्क
मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं । इस का मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार,निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों – नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा – से आवेग यहीं परआते हैं, जिनको समझना अर्थात ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम है । पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं।
अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को संग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंगका है। मानव मस्तिष्क में लगभग १अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिकाकोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिकाकोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मानव मस्तिष्क शरीर की बेहद जटिल और रहस्मय संरचना है। आज भी वैज्ञानिक इसके कई अनसुलझे रहस्यों को उजागर करने के लिए रिसर्च में लगे हुए हैं और समय-समय पर इसके बारें मे नई रिसर्च की जानकारी देते हैं । ज़रा सोचिए क्या मस्तिष्क की रचना एक सर्वज्ञ बौद्धिक सत्ता के वजूद का अकाट्य साक्ष्य नहीं है।
डीएनए
निर्देश, शिक्षण, प्रशिक्षण की प्रकिर्या उद्देश्यहीन नहीं हो सकती और न ही बिना इरादा, इक्षा और परायोजन के किर्यान्वित हो सकती है। निर्देश पुस्तिका लिखने वाला ऐसा किसी उद्देश्य के लिए ही करता है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि हमारे शरीर की खरबों कोषिकाओं मे से प्रत्येक मे डीएनए कोड के रूप मे एक सविस्तार निर्देश पुस्तिकाहोती है । जीवित कोशिकाओं मे जो डीएनए पाया जाता है उसमे अरबों खरबों सूचनाएं तथा जानकारियां भरी होती हैं। मूल रूप से डीएनए कोशिका के कार्यों, प्रजनन,और मौत के लिए ब्लू प्रिन्ट प्रदान करता है। किसी व्यक्ति को अनुवान्शिक गुण, स्वभाव एवं जन्म जात योग्यताएं इसी डीएनए के निर्देशानुसार प्राप्त होती हैं। जिस तरह कम्प्युटर प्रोग्राम 1 तथा ज़ीरो से बना होता है।(उदाहरण 100110111000001010101000011) 1और 0 जिस क्रम मे अरेंज होते हैं उसी तरह का निर्देश कम्प्यूटर कार्यक्रम को मिलता है। ठीक इसी तरह डीएनए चार अलग अलग रास वस्तुवों से बना है जिन्हे वैज्ञानिक संक्षिप्त मे ए टी जी और सी कहते हैं।यह रास वस्तुऐं विशेष क्रम मे जुड़ते हुए एक घुमावदार सीढ़ी की शकल बनाती हैं। यह रास वस्तुऐं जिस क्रम मे लगी होती हैं उसी तरह का निर्देश कोशिकाओं को उनके कार्यों के लिए प्राप्त होता है। इसमे सबसे आश्चर्य की बात यह है कि हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका की एक छोटी सी जगह मे यह कोड तीन अरब अक्षरों की लम्बाई मे होता है। केवल एक कोशिका की डीएनए राशि को समझने के लिए तीन अक्षर प्रति सेकेन्ड की दर से पढ़ने मे भी 31 साल लग जाएंगे। आपका रंग रूप आपके अनुवांशिक गुण आपका संबंध किस परिवार अथवा नस्ल से है यह सब जानकारियाँ डीएनए कोड मे निहित होती हैं। यह कोड आपकी पहचान है। जो लगातार आपकी कोशिकाओं के व्यवहार को निर्देशित करता है। कोई भी कम्प्युटर कार्यक्रम योजनाबद्ध तरीके के बिना अस्तित्व मे नहीं आसकता है। फिर इतना जटिल डीएनए कार्यक्रम बिना योजनाकार के अस्तित्व मे आया कैसे माना जा सकता है ? चाहे वह कोड हो, कार्यक्रम हो या कोई संदेश जोकि किसी भाषा के माध्यम से दिया गया हो, हमेशा उसके पीछे कोइ अति बुद्धिमान दिमाग़ होता है। हर कोशिका को डीएनए की भाषा मे दिया गया तीन तीन अरब अक्षरों पर आधारित यह अति रहस्यमय और सविस्तार निर्देश क्या अपने पीछे किसी महान बुद्धि के होने का साक्ष्य नहीं है। .वास्तव मे यह ईश्वर का एक सुबूत है जिसने हमारे शरीर की रचना की है।
सुन्दर और मनमोहक कविता
सत्य यह है कि इस सृष्टि की उपमा एक सुन्दर कविता से दी जा सकती है। सुन्दर और मनमोहक कविता शब्दों और वर्णों के क्रमानुसार रखने से वजूद मे आती है। लेकिन आप कभी यह सोच नहीं सकते कि शब्दों और वर्णों का यह अर्थपूर्ण क्रम स्वतः बिना किसी बुद्धि प्रयोग के अस्तित्व मे आ सकता है। न कभी ऐसा हो सकता है कि कुछ बन्दर कम्प्युटर कीबोर्ड अथवा टाइपराइटर पर यूँही अपना हाथ चलाते रहें और अचानक स्क्रीन या पेपर पर एक खूबसूरत कविता उत्पन्न हो जाए। फिर यह ब्रह्माण्ड जिसमे प्रमाणुओं, अणुओं मे क्रमबद्धता है, गणितीय समीकरण हैं, हेयर ट्रिगर संतुलन भी है, अद्भूत सुन्द्रता भी है, और तुरूटि रहित कला भी है, भला बिना किसी बुद्धिमान ईश्वर के स्वयं कैसे उत्पन्न हो सकता है ।
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