Quran Ki shikshaye

कुरआन की नैतिक शिक्षाएं

माता पिता का आदर और आज्ञा पालन

{وَقَضَى رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُلْ لَهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُلْ لَهُمَا قَوْلًا كَرِيمًا} [الإسراء: 23]

अनुवाद: ‘‘और माता-पिता के साथ सदव्यवहार करते रहा करो। यदि उनमें एक या दोनो बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उनको ‘उफ’ तक न कहो और न उनको झिड़को, और उनसे बातचीत करो तो आदब से और उनके सामने नम्रतापूर्वक स्नेह के साथ झुके रहो और उनके लिए (र्इश्वर से) प्रार्थना किया करो कि ऐ पालनहार ! तू इन दोनो पर कृपा कर, जिस प्रकार उन्होने मेरे बचपन में (स्नेह तथा वात्सल्य के साथ) मेरा लालन-पालन किया।’’ ( कुरआन 17 : 23-24)

नातेदारों की सहायता

{وَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا} [الإسراء: 26]

अनुवाद: ‘‘निकट संबंधियों, दीन-दुखियों तथा यात्रियों को उनका हक पहुंचाओं (अर्थात आर्थिक सहायता दो)”। (कुरआन 17 : 26) 

पतनी के साथ सद्व्यवहार

{وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ فَإِنْ كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَى أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللَّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا } [النساء: 19]

अनुवाद: “(ऐ ईमान वालो) उनके ( अर्थात अपनी पतनियों के ) साध भले ढंग से रहो सहो। अगर वे तुम्हें पसन्द न हों तो हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो मगर अल्लाह ने उसी मे बहुत कुछ भलाई रख दी हो”। (कुरआन 4 : 19)

पतियों के साथ पतनियों का व्यवहार

{ فَالصَّالِحَاتُ قَانِتَاتٌ حَافِظَاتٌ لِلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ اللَّهُ} [النساء: 34]

अनुवाद: “जो भली औरतें हैं वे आज्ञाकारी होती हैं और मर्दों के पीछे अल्लाह की रक्षा और संरक्षण मे उनके अधिकारों की रक्षा करती हैं”। (कुरआन 4 : 34)

पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार

{وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَبِذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَالْجَارِ ذِي الْقُرْبَى وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنْبِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ} [النساء: 36]

अनुवाद: “अच्छा व्यवहार करो माँ बाप के साथ यतीमों और मुहताजों के साथ, पड़ोसी नातेदार तथा अपरिचित पड़ोसी के साथ और साथ रहने वाले के साथ” …………। (कुरआनल 4:36)

दोसरों को क्षमा करना

{لَّذِينَ يُنْفِقُونَ فِي السَّرَّاءِ وَالضَّرَّاءِ وَالْكَاظِمِينَ الْغَيْظَ وَالْعَافِينَ عَنِ النَّاسِ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ} [آل عمران: 134]

अनुवाद: “(स्वर्ग उन लोगो के लिए है) जो सुख हो या दुख दोनो हालतों में परमार्थ के कामों में (धन) खर्च करते हैं और क्रोध को पी जाते हैं और लोगो के दोष क्षमा कर देते हैं”।  (कुरआन, 3 :134)

नाप तौल

{وَيَاقَوْمِ أَوْفُوا الْمِكْيَالَ وَالْمِيزَانَ بِالْقِسْطِ وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْيَاءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ} [هود: 85]

अनुवाद: “ऐ मेरी कौम के लोगो! नाप पूरी दिया करो, और तौल न्याय के साथ ठीक-ठीक किया करो। और लोगो को उनकी वस्तुएं देने में कमी न किया करो और देश में अव्यवस्था उत्पन्न न करो।” (कुरआन, 11 : 85)

न्याय

{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُونُوا قَوَّامِينَ لِلَّهِ شُهَدَاءَ بِالْقِسْطِ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلَى أَلَّا تَعْدِلُوا اعْدِلُوا هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ} [المائدة: 8]

अनुवाद: “ऐ र्इमानवालों (मुसलमानों)! र्इश्वर के लिए न्याय की गवाही देने हेतु खड़े हो जाया करो और लोगों की दुश्मनी तुमकों इस बात पर तत्पर न करे कि तुम न्याय न करो। तुमको चाहिए कि (हर अवस्था में) न्याय करो, यही बात धर्मपरायणता से अधिक निकट है तथा र्इश्वर से डरते रहो। निस्संदेह! र्इश्वर उन तमाम कामों का ज्ञान रखता हैं जो तुम करते हो।” (कुरआन, 5:  8)

    प्रतिज्ञा पालन

{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَوْفُوا بِالْعُقُودِ} [المائدة: 1]

अनुवाद: “ऐ र्इमानवालों! अपने वचनों को पूरा किया करो।”(कुरआन, 5: 1)

{وَأَوْفُوا بِعَهْدِ اللَّهِ إِذَا عَاهَدْتُمْ وَلَا تَنْقُضُوا الْأَيْمَانَ بَعْدَ تَوْكِيدِهَا } [النحل: 91]

अनुवाद: “र्इश्वर के नाम के साथ बांधी हुर्इ प्रतिज्ञा को पूर्ण करो और सौगंधों को दृढ़ करने के बाद उनको भंग न कर डालों।” (कुरआन, 16 : 91

दुशमन को दोस्त बनाने की शिक्षा

{وَلَا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلَا السَّيِّئَةُ ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ (34) وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الَّذِينَ صَبَرُوا وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ} [فصلت: 34، 35]

अनुवाद: “भलार्इ और बुरार्इ बराबर नही। (अत:) तुमकों चाहिए कि तुम (अपशब्द का) उत्तर ऐसे ढंग से दो जो सबसे उत्तम हो, तो (ऐसा करके तुम अनुभव करोगे कि) जिस व्यक्ति में और तुममें दुश्मनी थी वह मानों तुम्हारा घनिष्ट मित्र हैं, और (विशाल हृदयता का) यह गुण उन्ही लोगो को प्राप्त होता हैं जो सहिष्णुता से काम लेते हैं तथा उनको जो बड़े भाग्यशाली होते हैं।” (कुरान 41 : 34, 35)

गरीबों को दान

{إِنْ تُبْدُوا الصَّدَقَاتِ فَنِعِمَّا هِيَ وَإِنْ تُخْفُوهَا وَتُؤْتُوهَا الْفُقَرَاءَ فَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ وَيُكَفِّرُ عَنْكُمْ مِنْ سَيِّئَاتِكُمْ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ} [البقرة: 271]

अनुवाद: “अगर अपने दान खुले रूप मे दो तो यह भी अच्छा है  लेकिन अगर छुपा कर गरीबों को दो तो यह तुम्हारे लिए ज़्यादा अच्छा है। तुम्हारी बहुत सी बुराइयां इस नीति से मिट जाती है। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को हर हाल मे उसकी खबर है” (कुरआन 2: 271)

किसी को कुछ देने के बाद एहसान न जताओ

{ يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُبْطِلُوا صَدَقَاتِكُمْ بِالْمَنِّ وَالْأَذَى كَالَّذِي يُنْفِقُ مَالَهُ رِئَاءَ النَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ} [البقرة: 264]

अनुवाद: “ऐ ईमान वालो , अपने दान को एहसान जताकर और दुख देकर उस आदमी की तरह मिट्टी मे न मिलादो, जो अपना माल सिर्फ लोगों के दिखाने को खर्च करता है और न अल्लाह को मानता है न मरने के बाद के जीवन को”। (कुरान 2: 264)

इनसाफ की बात

{وَإِذَا قُلْتُمْ فَاعْدِلُوا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى} [الأنعام: 152]

अनुवाद: “और जब बात कहो तो इनसाफ की कहो चाहो मामला अपने नातेदार का ही क्यों न हो”। (कुरान 6: 152)

उपहास करने की मनाही

{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَسْخَرْ قَوْمٌ مِنْ قَوْمٍ عَسَى أَنْ يَكُونُوا خَيْرًا مِنْهُمْ وَلَا نِسَاءٌ مِنْ نِسَاءٍ عَسَى أَنْ يَكُنَّ خَيْرًا مِنْهُنَّ } [الحجرات: 11]

अनुवाद: “मुसलमानो! कोर्इ जाति (पुरूषो का कोर्इ समूह) किसी जाति (पुरूषों के किसी समूह न करे। संभव हैं वे अच्छे हो। और औरतें (भी दूसरी) औरतों का उपहास न करे, हो सकता है कि वे उनसे अच्छी हों”। (कुरआन, 49 :11)

व्यंग, और बुरी उपाधि से मनाही

{ وَلَا تَلْمِزُوا أَنْفُسَكُمْ وَلَا تَنَابَزُوا بِالْأَلْقَابِ بِئْسَ الِاسْمُ الْفُسُوقُ بَعْدَ الْإِيمَانِ وَمَنْ لَمْ يَتُبْ فَأُولَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ} [الحجرات: 11]

अनुवाद: “आपस मे एक दूसरे पर व्यंग न करो और न एक दूसरे को बुरी उपाधि से पुकारो। ईमान लाने के बाद दुराचार मे नाम पैदा करना  बहुत बुरी बात है। जो लोग इस नीति से बाज़ न आएं वे ज़ालिम हैं”। (कुरआन, 49 :11)

    दुर्भावना तथा परनिन्दा की मनाही

{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اجْتَنِبُوا كَثِيرًا مِنَ الظَّنِّ إِنَّ بَعْضَ الظَّنِّ إِثْمٌ وَلَا تَجَسَّسُوا وَلَا يَغْتَبْ بَعْضُكُمْ بَعْضًا أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَنْ يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ وَاتَّقُوا اللَّهَ} [الحجرات: 12]

अनुवाद: “(किसी के प्रति) अत्याधिक गुमान से बचो क्योकि अनेक पाप होते हैं और एक-दूसरे की गुप्त बातों की जिज्ञासा न किया करो और न एक-दूसरे के पीठ निन्दा किया करो। क्या तुम में से कोर्इ इस बात को पसंद करता हैं कि अपने मुर्दा भार्इ का गोश्त खाए। उससे तो तुम अवश्य घृणा करोगे। (इसलिए परनिन्दा न किया करो) और र्इश्वर का भय रखों”। (कुरआन, 49 :12)

हत्या एक जघन्य अपराध

{مَنْ قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا} [المائدة: 32]

अनुवाद: “जिसने किसी इनसान को कत्ल के बदले या ज़मीन मे बिगाड़ फैलाने के सिवा किसी और वजह से कत्ल किया उसने मानो सारे ही इनसानो का कत्ल कर दिया। और जिसने किसी की जान बचाई उसने मानो सारे इनसानो को जीवन दान किया”। (कुरआन 5: 32)

 व्यभिचार से दूर रहो

{وَلَا تَقْرَبُوا الزِّنَا إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَسَاءَ سَبِيلًا} [الإسراء: 32]

अनुवाद: “और व्यभिचार के निकट भी न फटको क्योकि वह अश्लील कर्म तथा बुरा रास्ता हैं”। (कुरआन, 17 : 32)

Join our list

Subscribe to our mailing list and get interesting stuff and updates to your email inbox.

Thank you for subscribing.

Something went wrong.

Leave a Reply