ilm ki fazilat

Ilm Ki Fazilat, इल्म की फजीलत क़ुरान और हदीम में

इल्म के बारे में कुरान का नज़रिया:

पढ़ना लिखना इस्लाम धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, कुरान पाक के 78000 शब्दों में से पहला शब्द जो हमारे पैगंबर पर “अल्लाह” कि तरफ से आया था वह “इकरा” “IQRA” था यानी “पढ़”, और कुरान पाक के 6000 आयतों में सब से पहले जो 5 आयतें हमारे नबी पर नाजिल हुईं उनका संपर्क पढ़ाई लिखाई से था:

अल्लाह ताला फरमाते हैं:

{اقْرَأْ وَرَبُّكَ الْأَكْرَمُ (3) الَّذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِ (4) عَلَّمَ الْإِنْسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ (5)} [العلق: 3 – 5]

अनुवाद: “पढ़ और जान ले के तेरा रब करीम है, जीस ने इल्म सिखाया क़लम से, और इंसांन को वह चीज़ें सिखाई जिन को वो नहीं जानता था” (सुरह अलक़: 3-5)।

एक अन्य आएत में, अल्लाह ताला फ़रमाते हैं:

{يَرْفَعِ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنْكُمْ وَالَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ دَرَجَاتٍ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ} [المجادلة: 11]

अनुवाद: “अल्लाह ताला उन लोगों के मक़ाम और दर्जों बुलंद करता है जो ईमान लाये, और जिन्हों ने इल्म हासिल किया”। (सुरह मुजादला: 11)

इल्म सीखना हर मुसल्मान पर फ़र्ज़ है

हमारे हज़रत मोहम्मद सल्लाहू अलिही वसल्लम ने कहा है:

عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ، أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: ” طَلَبُ الْعِلْمِ فَرِيضَةٌ عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ” (سنن ابن ماجه: رقم الحديث: 224)

अनुवाद: हज़रत अनस से रिवायत है कहते हैं: रसूलुल्लाह सल्लाहू अलिही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि: “इल्म सीखना हर मुस्लिम व्यक्ति  पर अनिवार्य है”। (इब्ने माजह: हदीस न: 224)

यानि इतना इल्म हर वियक्त के लिए अनिवार्य जिस से वह अपनी धार्मिक पूजा पाठ, अपना रहन सहन, और अपना कारोबार अपनी नोकरी, ठीक ठीक इस्लामी तरीके से कर सके, और उस को हराम हलाल की तमीज हो जाए।

इल्म और आलिम की फजीलत:

दूसरी तरफ, आप सल्लाहू अलिही वसल्लम ने उन छात्रों के बारे में बहुत अच्छे शब्द कहे हैं जो ज्ञान सीखने के लिए यात्रा करते हैं, हदीस में आया है कि:

عَنْ أَبِي الدَرْدَاءِ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: “مَنْ سَلَكَ طَرِيقًا يَطْلُبُ فِيهِ عِلْمًا سَلَكَ اللَّهُ بِهِ طَرِيقًا مِنْ طُرُقِ الْجَنَّةِ، وَإِنَّ الْمَلَائِكَةَ لَتَضَعُ أَجْنِحَتَهَا رِضًا لِطَالِبِ الْعِلْمِ، وَإِنَّ الْعَالِمَ لَيَسْتَغْفِرُ لَهُ مَنْ فِي السَّمَوَاتِ، وَمَنْ فِي الْأَرْضِ، وَالْحِيتَانُ فِي جَوْفِ الْمَاءِ”. (سنن أبي داود، رقم: 3651، سنن الترمذي، رقم 2682)

अनुवाद: हज़रत अबू दर्दा से रिवायत है रसूलल्लाह सल्लाहू अलिही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “जो लोग इल्म को सीखने के लिए यात्रा करते हैं, अल्लाह उनके लिए स्वर्ग का रास्ता आसान करते हैं, अल्लाह के फ़रिश्ते उस छात्र से परसन्न होकर अपने परों को बिछाते हैं, आकाश और पृथ्वी की सारी वस्तुयें आलिम के लिए क्षमा की प्रार्थना करती हैं, यहाँ तक कि समुद्र की मछलियाँ भी उस के लिए परार्थना करती हैं”। (अबू दाऊद हदीस नं: 3641, तिर्मिज़ी हदीस न: 2656)।

क़ुरआन आयतों और हदीसों को समझने के बाद, यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारा इस्लाम या कुरआन हमें इस्लाम सीखने से नहीं रोकता है, बल्कि यह हमारे लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाता है, ताकि एक मुसलमान अपने जीवन की अनिवार्यता सीख सके और अपने जीवन को सही भविष्य दे सके।

 

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: ” إِذَا مَاتَ الْإِنْسَانُ انْقَطَعَ عَنْهُ عَمَلُهُ إِلَّا مِنْ ثَلَاثَةٍ: إِلَّا مِنْ صَدَقَةٍ جَارِيَةٍ، أَوْ عِلْمٍ يُنْتَفَعُ بِهِ، أَوْ وَلَدٍ صَالِحٍ يَدْعُو لَهُ ” (رواه مسلم، رقم: 1631)

अनुवाद: हज़रत अबू हुरैरह से रिवायत कि रसूलुल्लाह सल्लाहू अलिही वसल्लम ने फ़रमाया है कि: “आदमी के मरने के बाद उस के नेक कामों का सिलसिला बंद हो जाता है मगर तीन चीज़ों की वजह से यह सिलसिला जारी रहता रहता है:

1: सदका जरिया से,

2: ऐसे इल्म से जिस लोग लाभ उठायें,

3: नेक लड़का जो मरने के बाद उस के लिए दुआ करता रहे”।

हदीस का मतलब:

हदीस में सदका जारिया का मतलब यह कि आदमी मरने से पहले दुनिया ऐसा कोई नेक काम करके जाए जिस से लोग उस के मरने के बाद भी उस से लाभ उठाते रहें, जैसे पानी की टंकी बनवा दे, या ग़रीब लोगों के लिए मकान बनवा दे, या कोई धार्मिक पाठशाला बनवा दे वगैरह, तो जितने लोग उस के काम से लाभ उठाते रहें गे उसको मरने के बाद बाद भी उस को सवाब मिलता रहे गा।

और इल्म से लाभ उठाने का मतलब यह है कि उस ने कोई अच्छी पुस्तक लिख दिया, या लोगों को अच्छा ज्ञान दिया और उस के ज्ञान से लोगों को खूब लाभ पहुँच रहा हो तो उस अच्छी पुस्तक और अच्छे ज्ञान का पुन्य उस को मरने के बाद भी मिलता रहेगा।

आम तौर पर यही होता है कि आदमी के मरने के बाद परिवार और रिश्ते नाते वाले लोग कुछ दिनों के बाद मरने वाले को भूल जाते हैं, मरने वाले के हित में कोई पुन्य का करना तो दूर की बात है उस को भूल कर भी याद नहीं करते, लेकिन जब आदमी की अपनी औलाद जिस की उसने अछी तरह परवरिश की हो, और उन को पढ़ा लिखा कर अच्छा इंसान बनाया हो, और उन्हें सोवर्ग नरक का माना मतलब समझाया हो तो ऐसी औलाद मरने के बाद अपने माता पिता और दूसरे परिवार वालों को सदैव याद रखते हैं, और उनकी छमा और मग्तिरत के लिए भगवान से हर पल परार्थना करते करते हैं, उन के नाम से सदका खैरात करते हैं, उनको भी यह बात भली भांति मालूम होती है की हम को भी एक दिन दुनिया छोड़ कर जाना है, और दुनिया से जाने वाला उनकी दुआओं का ज़्यादा मुहताज है।

 

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