Qurbani ka tarika

Qurbani Karne Ka Tarika कुर्बानी करने का तरीका

लेखक: मोहम्मद हाशिम कासमी बस्तवी

क़ुर्बानी क्या है? और यह क्यों की जाति है?

क़ुरबानी अल्लाह के पैगंबर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, पवित्र कुरान में आया है कि: हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने सपना देखा कि वह वह अपने एक मात्र और प्यारे सपूत हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी कर रहे हैं, और जब उन्होंने यह सपना बार-बार देखा, तो उन्होंने अपने बेटे को इसके बारे में बताया, तो बेटा खुशी-खुशी अल्लाह की राह में खुद का बलिदान देने के लिए तैयार हो गया।

अब जैसे ही इब्राहिम (अ.स.) ने अपने पुत्र का बलिदान करने के लिए उसके गले पर छुरी फेरने का प्रयतन किया जिस ज़िक्र पवित्र क़ुरान में इस तरह आया है: अन्ततः जब दोनों ने अपने आपको (अल्लाह के आगे) झुका दिया और उसने (इबाराहीम ने) उसे कनपटी के बल लिटा दिया (तो उस समय क्या दृश्य रहा होगा, सोचो!)। और हमने उसे पुकारा, “ऐ इबराहीम! तूने स्वप्न को सच कर दिखाया। निस्संदेह हम उत्तमकारों को इसी प्रकार बदला देते हैं।” निस्संदेह यह तो एक खुली हूई परीक्षा थी। और हमने उसे (बेटे को) एक बड़ी क़ुरबानी के बदले में छुड़ा लिया। और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका अच्छा ज़िक्र छोड़ा, कि “सलाम है इबराहीम पर। उत्तमकारों को हम ऐसा ही बदला देते हैं। (सुरे अस्साफफात 103-109)

अल्लाह ताला को इब्राहीम अलैहिस्सलाम का यह शौक़ और जज़्बा, और ईश्वर के आदेशों  पर आचरण की प्रयत्न इतनी पसंद आई कि क़यामत तक के लिए आप की इस सुन्नत को जारी कर दिया, यही कारण है कि दुनिया भर के सारे मुसलमान हर साल इब्राहिम अलैहिस्सलाम की याद में पशुओं का बलिदान देते हैं और उनकी सुन्नत को जिंदा करते हैं।

रसूलुल्लाह (स अ व) मदीना मनौव्वरा में 10 साल तक रहे और हर साल बराबर कुर्बानी करते रहे, और सहाबा को कुर्बानी करने का आदेश देते थे।

क़ुरबानी की फ़ज़ीलत और अहमियत

 

عَنْ زَيْدِ بْنِ أَرْقَمَ، قَالَ: قَالَ أَصْحَابُ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: يَا رَسُولَ اللَّهِ مَا هَذِهِ الْأَضَاحِيُّ؟ قَالَ: «سُنَّةُ أَبِيكُمْ إِبْرَاهِيمَ» قَالُوا: فَمَا لَنَا فِيهَا يَا رَسُولَ اللَّهِ؟ قَالَ: «بِكُلِّ شَعَرَةٍ، حَسَنَةٌ» قَالُوا: ” فَالصُّوفُ؟ يَا رَسُولَ اللَّهِ قَالَ: «بِكُلِّ شَعَرَةٍ مِنَ الصُّوفِ، حَسَنَةٌ». رواه ابن ماجه (3127)، والبيهقي في السنن الكبرى (19017)

अनुवाद: हज़रत ज़ैद बिन अरकम (रज़िअल्लहु अन्हु) से रिवायत है कि सहाबा ने रसूलुल्लाह (स अ व) से पूछा: ऐ अल्लाह के रसूल! क़ुर्बानी क्या है? आपने जवाब दिया: “यह तुम्हारे पिता हज़रत इब्राहीम (अ स) की सुन्नत है, तब सहाबा ने पूछा कि इससे हमें क्या फायदा मिले गा?” आपने कहा: “कुर्बानी के जानवर के हर बाल के बदले में एक नेकी मिलती है” सहबा ने फिर पूछा ऐ अल्लाह के रसूल ऊन वाले जानवर के बारे में आप क्या कहते हैं? आप ने फ़रमाया: ऊन वाले जानवर में भी हर बाल के बदले में एक नेकी मिले गी(सुन्न ई इब्ने ई माजह: हदीस न: 3127, सुनन ए बैहकी हदीस नं: 19017)

عَنْ عَائِشَةَ، أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: مَا عَمِلَ آدَمِيٌّ مِنْ عَمَلٍ يَوْمَ النَّحْرِ أَحَبَّ إِلَى اللهِ مِنْ إِهْرَاقِ الدَّمِ، إِنَّهُ لَيَأْتِي يَوْمَ القِيَامَةِ بِقُرُونِهَا وَأَشْعَارِهَا وَأَظْلاَفِهَا، وَأَنَّ الدَّمَ لَيَقَعُ مِنَ اللهِ بِمَكَانٍ قَبْلَ أَنْ يَقَعَ مِنَ الأَرْضِ، فَطِيبُوا بِهَا نَفْسًا. رواه الترمذي في سننه (1493)

अनुवाद: हज़रत आइशा (रज़ि अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फ़रमाया: “बकरा ईद के दिन, किसी भी व्यक्ति के लिए ख़ून बहाने (यानी क़ुर्बानी), से अच्छा अल्लाह के लिए कोई और कार्य नहीं, वह पशु जिस का बलिदान दिया गया है, वह क़यामत के दिन अपने सींघ, और अपने बालों और अपने खुरों समेत आये गा, क़ुर्बानी का ख़ून ज़मीन पर गिरने से पहले ही अल्लाह ताला उसको क़बूल कर लेते हैं, तो तुम इस खबर से अपने हिर्दय को परसन्न करो”। (तिर्मिज़ी शरीफ़ हदीस नंबर: 1493)

कुर्बानी किस पर वाजिब है?

हर मुसलमान, जिस पर ज़कात अनिवार्य है, यानी वह हर साल ज़कात अदा करता है, उस के लिए क़ुर्बानी ज़रूरी है, और ज़कात ऐसे ऐसे व्यक्ति के लिए अनिवार्य है, जिसके पास साढ़े 52.5 तोला या उस से अधिक चांदी, या साढ़े 7.5 तोला सोना या इतने ही मूल्य का रुपया पैसा हो।

कुर्बानी का मसला ज़कात से थोड़ा अलग है और वह यह है कि ज़कात की तरह कुर्बानी के माल पर एक वर्ष का गुज़रना अनिवार्य नहीं है, ऐसा व्यक्ति जो कुर्बानी के दो तीन महीने पहले साहेबे निसाब नहीं था यानि उस पर कुर्बानी या ज़कात ज़रूरी नहीं थी, और कुर्बानी से एक सप्ताह पहले उस के पास इतना पैसा आ गया जिस से ज़कात वाजिब हो जाती है तो अभी उस ज़कात वाजिब नहीं है लेकिन कुर्बानी अनिवार्य है।

कुर्बानी किस के नाम से होनी चाहिए?

आम तौर पर यह बात मशहूर है कि अगर किसी घर में पहली बार एक क़ुर्बानी की जाती है, तो उसे हुज़ूर (स अ व) के नाम पर किया जाना चाहिए, मगर ऐसी कोई बात नहीं है, अगर क़ुर्बानी किसी पर अनिवार्य है, तो सबसे पहले उसके नाम से कुर्बानी करना आवश्यक है। यदि क़ुर्बानी किसी पर अनिवार्य नहीं है, तो वह इसे हुजूर (स अ व) नाम पर कर सकता है, और अपने नाम पर भी कर सकता है।

कुर्बानी के जानवार

दुम्बा, बकरा, भेड़ की कुरबानी केवल एक आदमी की ओर से की जा सकती है, और गाय, बैल, भैंसे, और ऊंट कुरबानी 7 लोगो की ओर से की जा सकती है।

मसला: बकरा, बकरी के लिए 1 वर्ष का होना अनिवार्य है, और भेड़ और दुम्बा अगर मोटा और तैयार हो, देखने में 1 वर्ष का मालूम हो तो उस की कुर्बानी कर सकते हैं।

मसला: जिस जानवर की सींघ जड़ उखड़ गयी हो उस की कुर्बानी सही नहीं है।

मसला: अंधे, काने, और लंगड़े जानवर की कुर्बानी भी जाएज़ नहीं है।

मसला: जिस जानवर का कान ज़ादा कटा हो उस की भी कुर्बानी सही नहीं।

मस्ला: क़ुर्बानी का जानवर ख़रीदने के बाद उस में कोई ख़ामी निकल आई तो अगर आदमी धनी और साहेबे निसाब हो तो उस पर दूसरे जानवर की क़ुर्बानी ज़रूरी है, और अगर आदमी गरीब और निर्धन हो तो उस पर दूसरे जानवर की क़ुर्बानी ज़रूरी नहीं है वह उसी जानवर की क़ुर्बानी करे।

क़ुर्बानी का समय

क़ुर्बानी का समय 10 ज़िलहिज्जा (बकरा ईद के दिन) से आरम्भ होता है और तीसरे दिन असर की नमाज़ तक चलता है।

कुर्बानी का समय बकराईद की नमाज़ के बाद आरम्भ होता है, जिन शहरों या गाँवों में ईद बकरा ईद की नमाज़ अदा की जाती है, वहाँ बकरा ईद की नमाज़ से पहले क़ुर्बानी सही नहीं है, और जिन आस्थानों पर बकरा ईद की नमाज़ अदा नहीं की जाती है, वहाँ लोग बकरा ईद की नमाज़ से पहले सुबह से ही कुर्बानी कर सकते हैं।

कुर्बानी की दुआ और उस की निय्यत

कुर्बानी की निय्यत दिल से कर लेना काफी है, ज़बान से कहने की अवश्यकता नहीं, लेकिन ज़बह करते समय बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर कहना अनिवार्य है।

सुन्नत यह है की जानवर क़िब्ला की तरफ लिटा कर यह दुआ पढ़े:

इन्नी वाज्जहतू वाजहिया लिल्लज़ी फतस्समावाती वलअर्ज़ी हनीफ़ाओं वमा अना मिनल मुशरिकीन इन्ना सालाती वनुसुकि वमहआया वममाती लिल्लाहि रब्बिल आलमीन लशरीका लहू वबिजालिका उमिरतु वअना अव्वलुल मुसलिमीन।

नोट: दुआ में “मिन्नी” उस वक़्त कहते हैं जब ख़ुद आपनी क़ुर्बानी कर रहा हो। और दोसरे की क़ुरबानी हो तो “मिन” के बाद उस का नाम ले उदाहरण के लिए “मिन हामिद”, यस “मिन राशिद” वग़ैरह

क़ुर्बानी का सुन्नत तरीक़ा

अपनी क़ुर्बानी स्वयं करना सबसे अच्छा है, क्योंकि हुज़ूर (स अ व्) ने अपने हाथ से कुर्बानी करते थे।

यदि कोई व्यक्ति अच्छे तरीके से छुरी नही चला सकता हो तो वह दूसरे से ज़बह करा सकता है, लेकिन ज़बह के समय, बलिदान के जानवर के करीब रहना बेहतर है।

कुर्बानी से पहले जानवर को अच्छे तरीके से बांधें, और उसे क़िबला यानी ख़ाना काबा की तरफ करें, और ज़बह करने वाला खुद भी क़िब्ला की तरफ हो जाये, और छुरी को भी तेज़ कर ले।

 

क़ुर्बानी का मांस

यदि पशु के एक से अधिक भागीदार हैं, तो गोश्त को तौल लिया जाये।

उसके बाद, अपने कुर्बानी के गोश्त के 3 भाग करे, एक भाग अपने घर वालों के लिए रख ले, दूसरा अपने दोस्तों के लिए, और तीसरा गरीबों के लिए है। लेकिन यह विभाजन आवश्यक नहीं है, यदि आप चाहें, तो आप स्वयं कुर्बानी का सारा गोश्त खा सकते हैं।

आज कल बहुत सरे अस्थानों पर बड़े जानवर की क़ुर्बानी नहीं होती है, और छोटे जानवर का मांस लोग बाँटने से कतराते हैं, तो ऐसी जगहों ग़रीब लोगों घर मांस नहीं पहुंच पाता और वह लोग कुर्बानी के पीरियड में भी आम दिनों जैसा भोजन करते हैं, अतः मेरी राय में, ऐसे स्थानों में मांस का  विभाजित करना और गरीबों के घरों में मांस वितरित करने का आदेश देना चाहिए।

मसला: कुर्बानी का गोश्त बेचना हराम है, यह आदेश कुर्बानी करने वाले के लिए है, यदि वह गरीब वियक्त जिस को कुर्बानी का मांस दिया गया है वह अपनी आवश्यकता के अनुसार मांस को बेच सकता है और किसी दुसरे को भी दे सकता है।

मसला: ज़बह करने वाले या कसाई की मज़दूरी में क़ुर्बानी का मांस या कुर्बानी की खाल देना सही नहीं है।

क्या कुर्बानी का गोश्त गैर मुस्लिम को दे सकते हैं?

किसी गैर-मुस्लिम की कुर्बानी का मांस देने में कोई बुराई नहीं है।

कुरान पाक में सूरे हज आयत नंबर 28 में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं: “क़ुर्बानी के गोश्त को मुहताज और ग़रीबों को ख़िलाओ”।

इस आयत में मुस्लिम या गैर-मुस्लिम का कोई उल्लेख नहीं है।

जो भी निर्धन हो या जिस किसी को भोजन की आवश्यकता हो उस को क़ुर्बानी का मांस खिला सकते हैं।

क़ुर्बानी की खाल

यदि आप इसे बेचना चाहते हैं, तो उसके मूल्य का दान करना अनिवार्य है।

धार्मिक विद्यालों क़ुर्बानी की खाल को देना सब से अच्छा है।

या ऐसी एन. जी. ओ. को भी दे सकते है जो उस पैसे से गरीबों की सहायता करती हो।

Join our list

Subscribe to our mailing list and get interesting stuff and updates to your email inbox.

Thank you for subscribing.

Something went wrong.

This Post Has One Comment

  1. Aashif Magdum

    Well explained and informing article. Easy to understand 👍🏻

Leave a Reply