कया फ़र्ज़ और वाजिब में कोई अन्तर है?
फ़रज़ और वाजिब में अमल और क्रम के लिहाज़ से के हिसाब से कोई अन्तर नहीं है, जिस तरह फ़र्ज़ का अदा करना अनिवार्य और जरूरी होता है इसी तरह वाजिब को भी अदा करना ज़रूरी होता है, हाँ इतनी बात ज़रूर है कि फ़र्ज़ के इन्कार से मुस्लिम वियक्त काफ़िर हो जाता है, और फ़र्ज़ के छूट जाने से नामज़ नहीं होती चाहे भूल कर हो या जान बूझ कर, नमाज़ को हर हाल में फिर से पढ़ना अनिवार्य है, और अगर वाजिब भूले से छूट जाए तो सजदा सहु करना पड़ता है, और अगर जान बूझ कर वाजिब छोड़ दे तो नमाज़ को दोहराना ज़रूरी है।
नमाज़ में कुल 21 वाजिब हैं
1 तक्बीर तहरीमा में अल्लाहू अकबर कहना।
2 फ़र्ज़ नमाज़ की 2 रकातों में और सुन्नत और नफल नमाज़ की हर रकत में सुरे फ़ातिहा पढ़ना
यह इमाम और अकेले नमाज़ पढ़ने वाले के लिए है, अगर कोई आदमी किसी इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहा हो तो इमाम की सुरे फ़ातिहा उस केलिए काफी हो जाए गी, क्यूंकि हुज़ूर सल्ल्लाहु अलिही वसल्लम का इरशाद है की अगर कोई इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहा हो तो इमाम की किरत उस के लिए काफी हो जाए गी। (इब्ने माजह: 850) और मुस्लिम शरीफ की रिवायत में आया है: जब इमाम किरत करे तो खामूश रहो: (सहीह मुस्लिम (404) तो पता यह चला कि जो इमाम के पीछे हो उस के लिए सुरे फ़ातिहा पढ़ना वजिब नहीं है।
3 सुरे फ़ातिहा के साथ सूरत मिलाना
यानि सुरे फ़ातिहा के बाद फ़र्ज़ की 2 रकातों में और बाकी नमाज़ों की हर रकत में क़ुरआन करीम से एक लम्बी आएत या 3 छोटी छोटी आयतें इमाम और अकेले नमाज़ पढ़ने वाले के लिए वाजिब है।
4 फ़र्ज़ में पर्थम की दो रकातों को किरत के लिए ख़ास करना
मतलब यह है कि फ़र्ज़ की पर्थम की दोनों रकातों में किरत यानि अलहम्दु के बाद कोई सूरत पढ़ना वजिब है, अगर फ़र्ज़ नमाज़ 4 रकत वाली नमाज़ हो और पहली की दोनों रकातों में किरत नहीं किया बल्कि आखिर की दोनों रकातों में किरत तो वजिब के छूट जाने की वजह से सजदा सहो वजिब होगा।
5 सुरे फ़ातिहा को सूरत से पहले पढ़ना
जिन रकातों में सुरे फ़ातिहा के बाद सूरत मिलाना ज़रूरी है उन में सुरे फ़ातिहा को सूरत से पहले पढ़ना वजिब है, अगर उस का उल्टा किया तो सजदा सहो वजिब होगा।
6 एक ही रकत में सुरे फ़ातिहा को दोबारा न पढ़ना।
अगर एक ही रकत में सुरे को दोबारा पढ़ लिया तो सजदा सहो वजिब हो जाए गा,
7 जेहरी नमाज़ों में जैसे: फजर, मग़रिब, और ईशा में ज़ोर ज़ोर किरत करना।
8 सिर्री नमाज़ों में जैसे ज़ोहर, असर, में आहिस्ता आहिस्ता किरत करना।
9 तादीले अरकान
यानि क़याम, रुकू, सजदा, जलसा, और कौमा को भली भांति अदा करना, ऐसा ना हो कि अभी रुकू से सीधा खड़ा नहीं हुआ और’ सजदा में चला गया, या पहला सजदा अभी पूरा नहीं किया और दोसरे सजदा में चला गया।
10 कौमा करना
यानि रुकू से उठ कर सीधा खड़े होना, अगर कौमा नहीं किया तो सजदा सहो वजिब होगा।
11 सजदा में पेशानी और नाक को ज़मीन पर रखना वजिब है, बेगैर किसी मजबूरी के सिर्फ नाक पर सजदा करना मना है।
12 हर रकत में दोनों सजदों को लगातार करना
यानि दोनों सजदों के बीच कुछ और ना करे वरना सजदा सहो वजिब हो जाए गा।
13 दोनों सजदों के बीच में बैठना
यानि जलसा करना, अगर जलसा नहीं किया यानि दोनों सजदों के बीच नहीं बैठा तो सजदा सहो वजिब हो गा।
14 कादा ऊला करना
3 या 4 रकत वाली फ़र्ज़ या नफल नमाज़ इतनी देर बैठना जितनी देर में अत्तहीयात पढ़ ले।
15 कादा ऊला, और कादा अखीरा में तशोहुद यानि अत्तहियात पढ़ना।
16 कादा ऊला में तशौहुद के बाद फ़ौरन खड़ा होना।
अगर खड़े होने के बजाये दरूद शरीफ पढ़ना आरम्भ कर दिया तो सजदा सहो वजिब होगा।
17 नमाज़ की क्र्याऔं बिना किसी अलगाव के पूरा करना।
अगर पहली रकत के सजदे के बाद सीधे खड़े होने के बजाये कोई आदमी कादा में बैठ गया, या लगातार 2 रुकू, या तीन सजदे कर लिया तो क्र्याऔं में देरी की वजह से सजदा साहु वजिब होगा।
18 सलाम के शब्द से नमाज़ को समाप्त करना।
19 वित्र की नमाज़ में कुनूत को पढ़ना।
20 ईद और बकरा ईद की नमाज़ की 6 अतिरिक्त तक्बीरें
3 तक्बीर पहली रकत में, और 3 तक्बीर दोसरी रकत में, इन में से अगर कोई तक्बीर भूले से छूट गयी तो सजदा सहो वजिब होगा।
21 ईद और बकरा ईद की नमाज़ की दोसरी रकत में रुकू की तक्बीर
ईद और बकारा ईद की नमाज़ में यह तक्बीर वजिब है, और दोसरी नमाज़ों में रुकू की तक्बीर केवल सुन्नत है।
अगर वजिब छूट जाए तो क्या करे?
ऊपर जितनी बातें आप को बयाई गयी हैं, उन पर अमल करना हर नमाज़ में अनिवार्य है, अगर उन में से कोई बात रह जाए यानि छूट जाए तो अगर नमाज़ी ने उनको जान बूझ कर छोड़ा है तो नमाज़ नहीं होगी, नमाज़ को फिर से पढ़ना पड़े गा, और अगर भूल कर छोड़ा है तो सजदा सहो करने से नमाज़ हो जाए गी।
सजदा सहो का तरीका जानने के लिए किलिक करें
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